Geography, water, mineral resources, climate and physical conditions.
(छत्तीसगढ़ का भूगोल, जल, खनिज संसाधन, जलवायु एवं भौतिक दशायें। )
छत्तीसगढ़ का भौगोलिक पर्यावरण
छत्तीसगढ़ का भौगोलिक पर्यावरण, परिचय, भौतिक विभाग, नदियाँ, जलवायु
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महानदी, शिवनाथ और इन्द्रवती नदियों के कलकल निनाद से गुंजित होता छत्तीसगढ़ एक नवनिर्मित प्रदेश है। जहाँ बस्तर के साल के वन गीत गुनगुनाते हैं तो उसने छत्तीसगढ़ के लोक गीतों जैसी आनंदानुभूति होती है, छत्तीसगढ़ देश का धान का कटोरा है जहाँ धान कटाई के बाद धुंघरूओं की झंकार से छत्तीसगढ़ की संस्कृति छनकर आती है। छत्तीसगढ़ ने सदियों पहले राजशाही के अनेक रंग देखें। ब्रिटिश युग ने रिसायतों का जीवन देखा और स्वतंत्रता के सूर्य को उदित होते हुए भी देखा, लेकिन अपनी सादगी सम्पदा और संस्कृति को कभी नहीं छोड़ा, इसीलिये हमें अपने छत्तीसगढ़ राज्य पर गर्व है। छत्तीसगढ़ राज्य भारत के प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है, यह 17°46 उत्तरी आक्षांश से 24°5' डिग्री उत्तरी आक्षांश तक तथा 80°15' पूर्वी देशांतर से 84°20' पूर्वी देशांतर में स्थित है। इसकी लंबाई पूर्व से परिश्चम की ओर 700 किमी. तक और चौड़ाई उत्तर से दक्षिण की ओर 435 किमी. तक है।
छत्तीसगढ़ राज्य के उत्तर में उत्तर प्रदेश एवं झारखंड पूर्व में उड़ीसा, दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश पश्चिम में मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्य स्थित है। यहां की जलवायु मुख्यत: उष्णार्द्र तथा अधोआर्द्र प्रकार की है। जो उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु है।
छत्तीसगढ़ राज्य का कुल क्षेत्रफल 135.1 कि.मी. है जो पूरे देश का 4.1 प्रतिशत है। इसकी राजधानी रायपुर है। आज का छत्तीसगढ़ अतीतकाल में कोशल, दक्षिण कोशल महाकौशल, महाकांताएं दंडकारण्य आदि नामों से जाना जाता था। चीनी यात्री हेनसांग ने अपने भारत भ्रमण वृतांत में छत्तीसगढ़ को कोसल ही लिखा है, इसका छत्तीसगढ़ नाम सुनते ही यह सोचा जाता है कि इस अंचल में छत्तीसगढ़ या किले रहे होंगे। छत्तीसगढ़ का शाब्दिक अर्थ छत्तीसगढ़ या किलों से है। कलचुरी या हैहवंशी रतनपुर और रायपुर शाखाओं के अधीन 36 किले थे जिनमें से 18 गढ शिवनाथ नदी के उत्तर अर्थात रतनपुर में तथा 18 गढ़ दक्षिण में रायपुर राज्य में आते थे। छत्तीसगढ़ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1487 में खैरागढ़ के दरबारी कवि दलराम राव ने अपनी रचना में किया। छत्तीसगढ़ राज्य ने अपनी स्वतंत्र पहचान के लिये लंबी लड़ाई लड़ी थी और अंततः जनता, विभिन्न संस्थाओं, समितियों तथा प्रमुख शिक्षाविदों, साहित्यकारों, नेताओं, छात्र-छात्राओं के सहयोग तथा संघर्ष के परिणाम स्वरूप 1 नवंबर 2000 से छत्तीसगढ़ राज्य अपने अस्तित्व में आ गया।
छत्तीसगढ़ का भौतिक विभाग - छत्तीसगढ़ राज्य भारत के प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर पूर्वी भाग में विस्तृत है इसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ मैदान एवं दण्डकारण्य पठार के भौतिक भाग सम्मिलित है। भौतिक विभिन्नता के आधार पर यहां मैदानी, पठारी, पहाड़ी और पाट प्रदेश स्पष्टतः दृष्टिगोचर होते हैं, इसे निम्नांकित चार भौतिक विभागों में विभक्त किया जा सकता है -
1. पहाड़ी प्रदेश,
2. पठारी प्रदेश,
3. पाट प्रदेश,
4. मैदानी प्रदेश
1. पहाड़ी प्रदेश - छत्तीसगढ़ राज्य चारों तरफ से वनाच्छादित पहाड़ियों से घिरा हुआ है इसकी सामान्य उंचाई 1000 से 3000 मीटर तक है, इसकी भूगर्भिक संरचना की विभिन्नता तथा नदियों के अपरदन के फलस्वरूप उच्च भूमि कई श्रेणियों और पहाड़ियों में विभक्त है, इसे निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जा सकता है
1. मैकाल श्रेणी - यह बिलासपुर तथा राजनांदगांव जिले की सीमा में दक्षिण -पूर्व एवं उत्तर-पूर्व दिशा में फैला हुआ है, इसकी उंचाई समुद्रतल से 450 से 1000 मीटर के बीच है। इसमें कई उंची-उंची घाटिया है, जिनमें चिल्फी घाट तथा बृजपाती धाट प्रमुख है। यह घाटियाँ प्राकृतिक वनस्पति के आवरण से ढकी हुई है। पहाड़ की उंचाईयों में अलग-अलग प्रकार के चट्टानों के कारण भिन्नता है।
2. छुरी - उदयपुर की पहाड़ियाँ - छुरी की पहाड़ियां बिलासपुर जिले के मध्य में स्थित है, जिसकी उंचाई 600 से 1000 मीटर के मध्य है। उदयपुर की पहाड़ियाँ छुरी की पहाड़ियों के पूर्व में स्थित है इन पहाड़ियों का उत्तरी भाग मेनपाट हैं जो एक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है जो वनों से ढका हुआ है, मांडनदी यहां 400 मीटर गहरी ढाल वाली घाटी का निर्माण करती है।
3. चांगमखार-देवगढ़ पहाड़िया - यह पहाड़ियाँ उत्तरी भाग में बैकुंठपुर, उत्तरी सूरजपुर, प्रतापपुर, उत्तरी अम्बिकापुर, पश्चिमी कुसमी तथा दक्षिणी रामनुजगंज आदि तहसीलों में फैली है। समुद्र तट से इसकी उंचाई 600 से 1000 मीटर उंची है। सबसे उंची चोटी देवगढ़ 11027 मीटर उंची है।
4. अबुझमाड़ की पहाड़ियाँ - यह पहाड़ियाँ बस्तर जिले की नारायणपुर की पश्चिमी सीमा से दंतेवाड़ा जिले के बीजापुर तहसील के उत्तरी भाग तक फैली हुई है। नारायणपुर से दक्षिण की ओर पहाड़ी की लंबाई 100 किमी. तथा चौड़ाई 0.8 किमी है।
2. पठारी प्रदेश - छत्तीसगढ़ राज्य के पठारी प्रदेश निन्नांकित है -
1. पैण्ड्रा-लोरमी पठार - यह पठार छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के लोरमी तहसील और मुंगेली तहसील की उत्तर-पश्चिम सीमा पर दीवार के रूप में फैला है, इसका कुछ भाग पेंड्रा, कटघोरा, महासमुंद, पंडरिया तहसीलों में भी फैला है, इसकी उंचाई 700 से 900 मीटर के मध्य है।
2. धमतरी - महासमुंद उच्च भूमि - यह क्षेत्र महासमुंद-धमतरी कुरूद, राजिम, महासमुंद, गरियाबंद, सरायपाली एवं देवगढ़ में फैला हुआ है. समुद्रतल से इसकी उंचाई 400 से 900 मीटर है।
3. बस्तर का पठार - इसे दण्डकारण्य का पठार भी कहा जाता है. इसका विस्तार बस्तर और रायपुर के दक्षिणी भाग तक है, जिसमें चारामा, कांकेर, केसकाल, कोंडागांव, जगदलपुर, दंतेवाडा, अंतागढ़, बीजापुर तहसीलें आती है, इसकी औसत उंचाई 600 मीटर है। यह पठार घने वनों से आच्छादित है।
4. दुर्ग उच्च भूमि - यह भूमि पश्चिम की ओर रायपुर उच्च भूमि के समानान्तर फैली है, इसकी सबसे महत्वपूर्ण धरातलीय स्वरूप दल्ली राजहरा की पहाड़ियाँ है जो लौह अयस्क का विख्यात क्षेत्र है, दुर्ग जिले में दक्षिणी भाग में इसकी उंचाई 700 मीटर है।
3. पाट प्रदेश - यह भी पठारी क्षेत्र ही है किन्तु इनका धरातल सीढ़ी नुमा होता है। पाट पुरानी समप्राय भूमि का क्षेत्र है जिनका उत्थान हो जाने से वे उंचे हो गये हैं -
1. मैनपाट - मैनपाट सरगुजा जिले के दक्षिणी पूर्व में है। यह 29 किमी. लंबा और 12 किमी. चौड़ा है जो रायगढ़ की सीमा बनाता है। समुद.तल से इसकी उंचाई 1.15 मीटर है, यहां पर बाक्साइट का खनन होता है जिसे कोरबा के एल्युमिनियम के कारखानों में भेजा जाता है।
2. जारंग पाट - यह सरगुजा जिले के सीतापुर एवं लुंड्रा तक फैला हुआ है। इसकी समुद्र तल से उंचाई 1114 मीटर है।
3. जशपुर पाट - यह छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा पाट है जो जशपुर जिले के जशपुर तहसील में विस्तृत है। यह मैनी नदी का संपूर्ण उत्तरी क्षेत्र है तथा 4,300 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है। यह पाट महानदी के मैदान से उपर उठकर छोटा नागपुर का पठार में विलीन हो जाता है। इसका धरातल सीढीनुमा है इस पाट का ढालू क्षेत्र वनोच्छादित है और समतल भाग में कृषि क्षेत्र है।
4. सामरी पाट - यह सरगुजा जिले की सामरी-कुसमी तहसील के उत्तर-पूर्व में फैला हुआ है। समुद्र तल से उंचाई 700 से 1200 मीटर तक है, इसका पूर्वी भाग अधिक उंचा है जिसे जमीर पाट कहते हैं।
4. मैदानी प्रदेश - वह भाग जो समुद्र तल से 300 मीटर से कम ऊंचा होता है, उसे मैदानी प्रदेश कहते हैं । इसमें उच्चावच बहुत कम होता है और धरातल समतल होता है -
1. छत्तीसगढ़ का मैदान - छत्तीसगढ़ के महानदी बेसिन को छत्तीसगढ़ का मैदान कहा जाता है। यह मैदान 31. 600 वर्ग किमी में फैला हुआ है। यह समुद्र तल से महानदी के निकास पर 229 मीटर से लेकर उच्च भूमि की सीमा पर लगभग 330 मीटर है। मैदानी धरातल पर जलोढ़ मिट्टी का आवरण है जिसे चारों दिशाओं में प्रवाहित होने वाली महानदी विशानाथ, हसदो और उनकी सहायक नदियां ने काट दिया है।
(अ) दुर्ग - रायपुर मैदान - यह छत्तीसगढ़ मैदान का दक्षिणी भाग है जो कि शिवनाथ और महानदी के अपवाह में शामिल है, इसके मैदान में दुर्ग, भिलाई, रायपुर आदि प्रमुख औद्योगिक व व्यापारिक नगर स्थित है। इसे तीन भाग में विभक्त किया गया है -
(1) ट्रॉस महानदी मैदान - इसका विस्तार महानदी की पश्चिम दिशा में है जिसके अंतर्गत राजिम, रायपुर व धमतरी के भाग आते हैं।
(2) महानदी-शिवनाथ दोआब - यह रायपुर-दुर्ग के मैदान का दक्षिण-मध्यवर्ती भाग है, इसके बीच में खारून नदी बहती है, इसकी उंचाई 100 से 300 मीटर के मध्य है
(3) ट्राँस शिवनाथ मैदान - यह एक समरूप मैदान है जिसकी उंचाई औसतन 300 मीटर है। इसका विस्तार शिवनाथ नदी के पश्चिम में पूर्वी राजनांदगांव तथा पश्चिम दुर्ग जिले के 4.459 वर्ग किमी. क्षेत्र में हुआ है।
(ब) बिलासपुर-रायगढ़ मैदान - छत्तीसगढ़ मैदान का उत्तरी भाग बिलासपुर -रायगढ़ मैदान कहताला है, यह मैदान 11.188 वर्ग किमी. में फैला हुआ है, इसका उत्तरी भाग उच्च भूमि से घिरा हुआ विच्छेदित है। इसकी औसत उंचाई 280 मीटर है। इसे निम्नांकित उपभागों में विभक्त किया गया है
(1) हसदो-माड का मैदान - यह छत्तीसगढ़ मैदान का पूर्वी भाग है जो लीलागर नदी के पूर्वी भाग में राजगढ़ जिले के केलो नदी तक फैला हुआ है। इसकी उत्तरी सीमा पर चैंवर दाल की पहाड़ियाँ है जो कड़प्पा काल की कवार्टजाईट चट्टानों से बनी है। यह हसदों तथा मांड नदियों द्वारा अप्रवाहित क्षेत्र है, इस मैदान का ढाल उत्तर से दक्षिण होते हुए पूर्व की ओर है।
(2)बिलासपुर की मैदान - यह मनियारी अरपा तथा लीलागर नदियों के जलोढ से आच्छादित है तथा छत्तीसगढ़ मैदान के उत्तरी भाग में स्थित है, इसकी औसत उंचाई औसतन 250 मीटर से कम है, इस मैदान का मध्य भाग अग्पा तथा उसकी सहायक नदियों जो पेंड्रापठार से निकलती है के अपवाह क्षेत्र में है।
(3) रायगढ़ का मैदान - यह छुरी एवं उदयपुर पहाड़ियों के बीच स्थित एक संक्रमणीय श्रृंखला के समान है, यह धनुष के आकार का बेसिन है जो 100.20 वर्ग किमी. में फैला हआ है, इसका ढाल मंद है।
(4) बस्तर का मैदान - यह छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी सीमांत क्षेत्र में है यह गोदावरी तथा उसकी सहायक सबरी नदी का मैदान है, यह प्रदेश की दक्षिणी सीमा के उत्तर की ओर दक्षिणी पठार तथा उत्तर पूर्वी पठार तक विस्तृत है, कोटा एवं बीजापुर तक इसका विस्तार है , इसकी उंचाई 150 से 300 मीटर के मध्य है तथा चौड़ाई लगभग 25 किमी.
(5) कोटारी बेसिन - इसका विस्तार दक्षिणी-पश्चिमी सीमांत क्षेत्र में है, भानुप्रतापपुर, पंखाजुर व दक्षिणी मोहला तक यह विस्तृत है। इसका समुद्र तल से उंचाई औसतन 300 से 450 मीटर है।
(6) सारंगढ का मैदान - यह पूर्वी सीमांत क्षेत्र में है जो कि सारंगढ तहसील में आता है, समुद्र तल से इसकी उंचाई औसतन 300 से 400 मीटर है। महानदी के दक्षिणी भाग पर स्थित यह मैदान एक लंबी किन्तु निचली पहाड़ी श्रेणी से दो भागों में विभक्त हो गया , भूमि का ढाल उत्तर से दक्षिण की ओर है, पश्चिम भाग को सारंगढ़ का मैदान तथा पूर्वी भाग को सरिया मैदान कहते है। सारंगढ मैदान की मुख्य नदी लातनाला है और सरिया की कंकांडी नाला । यह कृषि प्रधान क्षेत्र है।
(7) कोरबा को बेसिन - यह छत्तीसगढ़ प्रदेश के उत्तर-पश्चिम कोरबा तक विस्तृत है। यह बेसिन 200 वर्ग किमी. में फैला है इसकी उंचाई 300 मीटर है।
(8) हसदो-रामपुरा का बेसिन - यह प्रदेश के उत्तर में स्थित है, इसके तहत उत्तरी कटघोरा, पूर्वी पेंड्रा तथा दक्षिणी मनेन्द्रगढ़ शामिल है, समुद्रतल से इसकी उंचाई 300 से 450 मीटर है। यह हसदो बेसिन का एक खुला निचला क्षेत्र है।
(9) सरगुजा का बेसिन - छत्तीसगढ़ प्रदेश के उत्तर मध्य क्षेत्र में यह विस्तृत है जिसमें दक्षिणी प्रतापपुर, दक्षिणी सूरजपुर, अंबिकापुर तथा पश्चिमी सीतापुर आते हैं। इसकी समुद्र तल से उंचाई 400 से 650 मीटर है।
(10) रिहन्द का बेसिन - यह प्रदेश के उत्तरी सीमांत भाग में वाड्रफनगर में विस्तृत है।
इसकी उंचाई औसतन 300 से 450 मीटर तक है।
(11) कन्हार का बेसिन - यह प्रदेश के उत्तर-पूर्वी सीमांत भाग में फैला हुआ है। इसके अंतर्गत वाड्रफ नगर तथा उत्तरी रामानुजगंज -पाला तहसीलें इसके अंतर्गत आती है।
छत्तीसगढ़ की नदियाँ -
छत्तीसगढ़ की जीवनदायनी नदियाँ इसके वैभव और संस्कृति की प्रतीक है। इसकी प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित है -
(1) महानदी - यह प्रदेश की जीवन रेखा है, महानदी सिहावा पर्वत से 420 मीटर की उंचाई से निकलकर दक्षिण पूर्व की ओर उड़ीसा के पास से बहते हुए 286 किमी. है तथा इसकी कुल लंबाई 858 किमी है, इस पर दुधावा, माढमसिल्ली, गंगरेल, सिकासेर व सोंदर बांधा बने हैं। उड़ीसा पर विशाल हीराकुंड बांध इसी पर बना है। राजिम, सिरपुर व शिवरीनारायण जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल इसके तट पर स्थित है।
(2) शिवनाथ नदी - यह छत्तीसगढ़ की दूसरी महत्वपूर्ण नदी है, इसका उदगम राजनांदगांव में अम्बागढ़ तहसील के 625 मीटर उंची पानाबरस पहाड़ी से हुआ है, इसकी कुल लंबाई 280 किमी. है, इसकी मुख्य सहायक नदियां लीलागर, मनियारी, आगर, हांप, सुरही, श्वासन और अरपा है।
(3) मनियारी नदी - यह बिलासपुर के उत्तर-पश्चिम में लोरमी पठार से निकलती है, इसका उदमग स्थल भुखंड पहाड़ बेलपान के कुंड तथा लोरमी का पहाड़ी क्षेत्र है, इसकी कुल लंबाई 134 किमी है। यह दक्षिी पूर्वी भाग बिलासपुर व मुंगेली की सीमा बनाती हुई बहती है। इस पर खारंग जलाशय का निर्माण किया गया है। आगर, छोटी नर्मदा व घोघा इसकी सहायक नदियाँ है।
(4) लीलागर - इस नदी का उदगम कोरबा की पूर्वी पहाड़ी से हुआ है यह कोरबा क्षेत्र से निकलकर दक्षिण में बिलासपुर और जांजगीर की सीमा बनाती हुई शिवनाथ नदी में मिल जाती है। इसकी कुल लंबाई 135 किमी और प्रवाह क्षेत्र 2.333 वर्ग किमी है।
(5) खारून नदी - यह महानदी की सहायक नदी है, यह दुर्ग जिले की बालोद तहसील के सजारी क्षेत्र से निकलकर शिवनाथ में मिलती है। इस नदी की लंबाई 208 किमी तथा प्रवाह क्षेत्र 22,680 किमी है।
(6) हसदो नदी - यह महानदी की प्रमुख सहायक नदी है एवं कोरबा के कोयला क्षेत्र में तथा चांपा मैदान में प्रवाहित होने वाली प्रमुख नदी है। यह सरगुजा जिले की कैमूर पहाड़ियों से निकलकर कोरबा, बिलासपुर से बहती हुई महानदी में मिल जाती है। इसकी लंबाई 209 किमी और अपवाह क्षेत्र 7.210 किमी है।
(7) इन्द्रावती नदी - यह गोदावरी की सबसे बडी सहायक नदी है, इसकी लंबाई 372 किमी और प्रवाह क्षेत्र 26.620 वर्ग किमी है। इसे बस्तर की जीवनदायिनी नदी माना जाता है, यह बस्तर की सबसे बड़ी नदी है, इसका उदगम उड़ीसा राज्य के कालाहाण्डी जिले के युआमल नामक स्थान में डोंगरला पहाड़ी से हुआ है, आन्ध्रप्रदेश से होते हुए यह गोदावरी नदी में मिल जाती है । इन्द्रावती के तट पर जगदलपुर शहर स्थित है।
(8) कोटारी नदी - यह इन्द्रावती नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है, जिसका उदगम दुर्ग जिले से हुआ है। इसका प्रवाह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम सीमा पर राजनांदगांव की उच्च भूमि है।
(9) डंकनी-शंखनी नदी - यह दोनों भी इंद्रावती की सहायक नदियाँ है। डंकनी नदी किलेपाल तथा पाकनार की डांगरी-डोंगरी से एवं शंखनी नदी बैलाडील की पहाड़ी के 4009 फीट उंचे नंदीराज शिखर से निकलती है , इन दोनों का संगम दंतेवाड़ा में होता है।
(10) नारंगी नदी - यह चित्रकूट प्रपात के समीप इंद्रावती नदी से मिलती है।
(11) गुडरा नदी - यह छोटे डोंगर की चट्टानों के मध्य अबूझमाडं की वनों से प्रवाहित होती है।
(12) शबरी नदी - यह बस्तर के दक्षिणी क्षेत्र की प्रमुख नदी है जो दंतेवाड़ा के पास बैलाडीला पहाड़ी से निकलती है और आंध्रप्रदेश के कुनावरम के पास गोदावरी नदी से मिल जाती है। बस्तर में इसका प्रवाह क्षेत्र 180 किमी है।
(13) बाघ नदी - यह नदी राजनांदगांव की कुलझारी पहाड़ी से निकलती है जो इस जिले की सीमा को निर्धारित करती है।
(14) अरपा नदी - इस नदी का उदगम पेंड्रा पठार की खाड़ी की पहाड़ी से हुआ है, यह महानदी की सहायक नदी है, यह बिलासपुर में प्रवाहित होती है और बरतोरी के समीप ठाकुर देवा नामक स्थान में शिवनाथ से मिल जाती है। इसकी लंबाई 147 किमी है।
(15) तांदुला नदी - यह कांकेर के भानुप्रतापुर के उत्तर में स्थित पहाड़ियों से निकलती है, यह शिवनाथ की प्रमुख सहायक नदी है जिसकी लंबाई 64 किमी है। बालोद तथा आदमाबाद के पास इस पर तांदुला बांध बनाया गया है जिससे पूर्वी भाग में नहरों से सिंचाई होती है।
(16) मारी नदी - यह दक्षिण-पश्चिम दिशा में भैरमगढ़ है, इसे मोरला नदी भी कहते हैं।
(17) पैरी नदी - यह महानदी की सहायक नदी है जो गरियाबंद के अप्ररीगढ पहाड़ी से निकलकर महानदी में राजिम में आकर मिलती है, इसकी लंबाई 90 किमी है।
(18) जोक नदी - यह रायपुर के पूर्वी क्षेत्र का जल लेकर शिवरी नारायण के ठीक विपरीत दक्षिणी तट पर महानदी से मिलती है, रायपुर जिले में इसकी इंबाई 90 किमी और प्रवाह क्षेत्र 2.480 वर्ग मीटर है।
(19) माँड नदी - यह सरगुजा जिले के मैनपाट के पास से निकलकर रायगढ़, सरगुजा, बस्तर, जांजगीर जिलों में बहती हुई चंद्रापुर के समीप महानदी में मिल जाती है। रायगढ़ में इसकी लंबाई 174 किमी और प्रवाह क्षेत्र 4.033 वर्ग किमी है।
सिंचाई - छत्तीसगढ़ एक कृषि प्रधान राज्य है जो सिंचाई के लिये मुख्यत: वर्षा पर अवलंबित है। यहाँ सिंचाई का सम्यक विकास नहीं हो गया है। इसके बाद नहरों से सर्वाधिक सिंचाई लगभग 70 प्रतिशत होती है। द्वितीय स्थान तालाब व कुंओं का है।
प्रमुख सिंचाई परियोजना
(1) हसदेव बांगो परियोजना - यह बिलासपुर जिले में हसदेव नदी पर बनाया गया है। इसमें बिलासपुर, जांजगीर और रायगढ़ जिले सिंचित होते हैं।
(2) पैरी परियोजना - यह रायपुर जिले के गरियाबंद तहसील के पैरी नदी पर अवस्थित है।
(3) महानदी परियोजना - यह छत्तीसगढ़ की महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है, इससे धमतरी, रायपुर व दुर्ग जिलों में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है।
(4) कोडार परियोजना - यह कोडार नदी पर स्थित है जो कि महासमुंद में स्थित है।
(5) मनियारी जल परियोजना - यह बिलासपुर के लोरमी तहसील में मनियारी नदी पर बना है। इस परियोजना से अधिकतम 49542 हेक्टेयर सिंचाई संमत है।
छत्तीसगढ़ की मिट्टी - छत्तीसगढ़ में लाल तथा पीली मिट्टी अधिक पाई जाती है। नाइट्रोजन तत्वों की कमी के कारण इसकी उर्वरकता कम होती है। किन्तु यहाँ की मिट्टी धान के फसल के लिये आदर्श है। छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहलाता है। यहाँ की मिट्टीयों में निम्नांकित प्रकार प्रमुख हैं -
(1) लाल और पीली मिट्टी - इस वर्ग की मिट्टियाँ प्राचीन युग की ग्रेनाइट शिष्ट चट्टानों पर विकसित हुई है। यह महानदी बेसिन के पूर्वी जिलों सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, जांजगीर, रायगढ़, जशपुर, रायपुर, धमतरी, महासमुंद, कांकेर, बस्तर और दंतेवाड़ा में विस्तृत है।
(2)लैटराइट मिट्टी - यह मिट्टी लाल शैलों से निर्मित होती है इसलिये इसका रंग लाल होता है, यह मिट्टी सरगुजा जिले के मैनपाट पठार के दक्षिणी भाग, बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर, दुर्ग में बेमेतरा, बस्तर में जगदलपुर के आसपास मिलती है।
(3) काली मिट्टी - काली मिट्टी रायपुर जिले के मध्यक्षेत्र बिलासपुर तथा राजांदगांव जिले के पश्चिमी भाग कवर्धा में पाई जाती है। लोहा तथा जीवाशंकी उपस्थिति के कारण इसका रंग काला होता है, पानी पड़ने पर यह चिपकती है और सूखने पर इसमें बड़ी मात्रा में दरारें पड़ती है।
(4) लाल बलुई मिट्टी - यह दुर्ग, राजनांदगांव, पश्चिमी रायपुर और बस्तर संभाग में पाई जाती है।
(5) लाल दोमट मिट्टी - यह दक्षिणी पूर्वी बस्तर जिले में पाई जाती है।
छत्तीसगढ़ की जलवायु -
छत्तीसगढ़ मध्य भारत में स्थित है , यह उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला प्रदेश है, कर्क रेखा में स्थित होने के कारण यह गर्म प्रदेश है। यहाँ की जलवायु मुख्यत: उष्णाई या अधो आई प्रकार की है। कर्क रेखा प्रदेश के मध्य से होकर गुजरती है जिसके कारण ग्रीष्म ऋतु अत्यधिक गर्म व शीत ऋतु अधिक ठंडी होती है।
प्रदेश में मार्च से जून तक तापमान तीव्रता से बढ़ता है तत्पश्चात तापमान कम हो जाता है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक तापमान मई माह में लगभग 40 सेंटीग्रेड में होता है, सबसे कम तापमान दिसंबर में 16 सेंटीग्रेड होता है। मई का महीना सर्वाधिक गर्म और दिसंबर-जनवरी ठंडे महीने है। प्रदेश के सभी भागों में दैनिक तापांतर मार्च में सबसे अधिक मिलता है क्यों कि इस समय आकाश स्वच्छ रहता है। प्रदेश में सबसे अधिक तापमान रायपुर जिले में तथा सबसे कम तापमान सरगुजा जिले में होता है। चांपा सबसे अधिक गर्म और अंबिकापुर सबसे ठंडी जगह है।
वर्षा - छत्तीसगढ़ प्रदेश में वर्षा की प्रकृति मानसूनी है। यहां पर अधिकांश वर्षा बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाओं से होती है। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक वर्षा बस्तर के अबूझमाड क्षेत्र में होती है, यहाँ का औसत 187.5 सेमी. है। छत्तीसगढ़ में मानसून का आगमन सर्वप्रथम बस्तर में होता है इसलिये वहाँ सर्वाधिक 171 दिनों तक नमी रहती है।
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